"Hello. I exist. Okay. Bye"
"Hello. I exist. Okay. Bye." थोड़ा सकुचाते हुए, कुछ एक दो मित्रों को ये संदेश लिखा मैंने, कुछ क्षणों पश्चात मेरे दुर्भाषक यंत्र पर उन सभी मित्रों का जवाब आया। प्रसन्नचित मुद्रा में मैंने एक एक करके तीनों ही सन्देश पढ़े, जैसे एक माँ मुस्काती हुई अपने फौजी पुत्र के पत्रों का इंतज़ार करती हो, और जैसे ही डाकिया पत्र के साथ अपनी साइकिल की घंटी बजाता हुआ गली के मोड़ पे पहुँचता हैं, माँ उसका आरती की थाल ले कर उसका स्वागत करती हैं, मानो साक्षात भगवान के दर्शन हुए हो। पत्र रूपी इश्वर, जिसको पढ़ के माता को अलोकिक अनुभूति होती हैं। मैंने सर्व प्रथम पढ़ा अपने भाई का जवाब, जिसने कुछ पलों में ही उत्तर दिया था मेरे अनगिनत परन्तु अनकहे सवालो का। "Hello. I exist. Okay. Bye." "Hello. I exist too. Okay. Bye." सोचनीय थी उसकी बातें, प्रश्नों की बारिश पड़ती हुई सी लगी मुझे, शायद मैंने भी अनदेखी की ही थी उसकी, दुःख उसे भी हुआ होगा जब पिछले बरस उसका जन्मदिवस भूल गयी थी। बारी थी अब एक पुराने, बहुत पुराने मित्र का सन्देश पढने की. ...